‘मरने के बाद’ का अनुभव कैसा होता है?

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ये वाकया इंग्लैंड में 2011 का है. 57 साल के मिस्टर ‘ए’ काम के दौरान अचानक बेहोश हो गए और उन्हें साउथैम्पटन के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया.

चिकित्साकर्मी उनके पेशाब करने के रास्ते में केथेटर डालने की कोशिश कर रहे थे, तभी उन्हें हार्ट अटैक आया. ऑक्सीजन की कमी से उनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया और मिस्टर ‘ए’ की मौत हो गई.

लेकिन आपको ये जानकर अचरज होगा कि अस्पताल के उस कमरे में उसके बाद क्या क्या हुआ…

ये मिस्टर ‘ए’ को याद है. उनके मुताबिक मेडिकल स्टाफ ने उनको तुरंत ऑटोमेटेड ‘ए’ क्सटर्नल डाफाइबरिलेटर (ए आईडी) से झटका देना शुरू किया.

इस दौरान मिस्टर ‘ए’ को दो लोगों की आवाज़ें भी सुनाई दीं- ‘मरीज को झटके दो.’ इसी दौरान मिस्टर ‘ए’ को लगा कि कोई महिला उनका हाथ पकड़कर छत के रास्ते से उन्हें बाहर ले जाना चाहती हैं. वे अपने बेजान शरीर को छोड़कर उसके साथ हो लिए .

मौत का अनुभव

अस्पताल के रिकॉर्ड्स के मुताबिक एईडी से जुड़े दो आदेश दिए गए थे और उनके आसपास वैसे ही लोग मौजूद थे, जैसा कि मिस्टर ‘ए’ ने बताया है. यानी अपना इलाज शुरू होने से पहले जिन लोगों को मिस्टर ‘ए’ ने नहीं देखा था, ना केवल उनकी बल्कि उनके कामों के बारे में भी मिस्टर ‘ए’ ने सही बताया.

मिस्टर ‘ए’ ने उन तीन मिनटों के दौरान घटी हर बात का सही जिक्र किया, जो तब घटीं जब असल में मृत थे और उन्हें इनके बारे में जानकारी नहीं होनी चाहिए थी.

मिस्टर ‘ए’ अपनी यादें इसलिए लोगों के साथ शेयर कर पा रहे हैं क्योंकि डॉक्टरों की कोशिशों से उनमें जीवन लौट आया. मिस्टर ‘ए’ का उदहारण जर्नल रिससिटेशन के एक पर्चे में शामिल किया गया है. यह पर्चा मौत के करीब से अनुभवों को स्वीकार करता है.

अब तक तो शोधकर्ताओं के मुताबिक जब हृदय धड़कना बंद कर देता है या फिर आदमी के दिमाग को रक्त नहीं मिलता है तो सभी जागरूकता उसी वक्त समाप्त हो जाती है.

यानी आदमी की तकनीकी तौर पर मौत हो जाती है. जब से लोगों ने मौत के विज्ञान के बारे में जानना शुरू किया है, तबसे उन्हें यह भी मालूम होने लगा है कि ऐसी स्थिति से आदमी जीवन में लौट भी सकता है.

सालों तक ऐसे मामलों के बारे में आदमी उस घटना की यादों को बताता है, लेकिन विज्ञान और डॉक्टर उसे स्वीकार नहीं करते. इसकी वजह तो यही थी कि यह विज्ञान की खोजबीन के दायरे से बाहर की बातें थीं.

न्यूयार्क के स्टोनी ब्रूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसीन के रिससिटेशन रिसर्च के निदेशक और क्रिटिकल केयर के फिजीशियन सैन पारनिया ऐसे अनुभवों पर रिसर्च कर रहे हैं.

पारनिाय अमरीका और ब्रिटेन के 17 संस्थानों के सहयोगियों के साथ मिलकर उन 2000 लोगों के अनुभवों पर अध्ययन कर रहे हैं, जिनको ऐसे अनुभव हुए हैं.

2000 लोगों पर अध्ययन

चार साल तक इन लोगों ने इन 2000 हार्ट अटैक के रोगियों पर नज़र रखी. इन सभी में समानता ये थी कि मरीज के हृदय ने काम करना बंद कर दिया था और आधिकारिक तौर पर उनकी मृत्यु हो चुकी थी.

इन 2000 मरीजों में से करीब 16 फीसदी लोगों को डॉक्टरों ने मौत के मुंह से वापस खींच लिया. पारनिया और उनके सहयोगियों ने इन 16 फीसदी लोगों में से एक तिहाई – यानी 101 लोगों का इंटरव्यू किया.

पारनिया बताते हैं, “हमारा लक्ष्य उनके अनुभवों को समझना था. इनके मानसिक और ज्ञान संबंधी अनुभवों को जानना था. हमें ऐसे भी लोग मिले जिनके पास अपनी मौत के बाद के पलों के बारे में सारी जानकारी थी.”

वो 7 थीम

ये सातों थीम इस तरह से हैं- ”डर, जानवरों और पौधों को देखना, चमकीली रोशनी, हिंसा और उत्पीड़न, पहले देखा हुआ कोई दृश्य, परिवार को देखना और हार्ट अटैक के बाद की घटनाओं का जिक्र.”

वैसे इन लोगों के अनुभव प्रसन्न करने वाले भी हैं और डरावने भी हैं. कई लोग खुद के डरे होने और पीड़ित होने का अनुभव बताते हैं. मसलन एक मरीज की सुनिए- “मैं एक समारोह में गया और समारोह में आग लग गई. मेरे साथ चार लोग थे, जो झूठ बोलता उसकी मौत हो जाती. मैंने ताबूत में लोगों को दफन होते हुए देखा.” किसी ने बताया कि उसे किसी ने गहरे पानी में खींच लिया.

करीब 22 फ़ीसदी लोगों को शांति और प्रसन्नता से जुड़ी चीजों का अनुभव हुआ. कुछ को जीवित चीजें दिखाई दीं. एक ने बताया, “हर तरफ पौधे थे, फूल नहीं.” तो कुछ ने बताया, “मुझे तो शेर और बाघ दिखाई दिए.”

कुछ को चमकीली रोशनी भी दिखाई दी. कुछ ने अपने परिवार वालों से मुलाकात का जिक्र किया. इतना ही नहीं कुछ लोगों ने पहले देखी हुई घटना, या शरीर से अलग होने के भाव का जिक्र किया.

पारनिया कहते हैं, “यह स्पष्ट है कि ये लोगों की मौत के बाद के अनुभव थे. ये जरूर था कि ये अनुभव उनकी पृष्ठभूमि और पूर्वाग्रह वाली सोच पर आधारित थे. जिस तरह से भारत का कोई शख्स मौत के बाद वापसी करते कहे कि उसने कृष्ण को देखा था. उधर एक अमरीकी शख्स ये कहे कि उसने ईसा को देखा है. हालाँकि किसे पता है कि ईश्वर कैसा दिखता है.”

नई जानकारियों का इंतज़ार

शोध करने वाला यह दल अब तक इन विभिन्न अनुभवों के अंतर को नहीं समझ पाया था. पारनिया के मुताबिक ये अनुभव और भी लोगों को होता होगा लेकिन कई लोगों की यादाश्त दवाओं के वजह से प्रभावित होती होगी.

पारनिया ये भी मानते हैं कि मौत के मुंह से वापस आने वाले लोगों में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं- ”कुछ का मौत का डर चला जाता है, तो कुछ के जीवन में परोपकारी भाव बढ़ जाता है.”

बहरहाल, पारनिया और उनके सहयोगी आपस में इस विषय पर विस्तृत अध्ययन की तैयारी की योजना बना रहे हैं, ऐसे में इस मामले में अभी और भी जानकारियों के सामने आने की उम्मीद है.

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