तनाव मुक्त होने के लिए अपने आयुर्वेदिक टिप्स

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घर में अकेले रहने और नकरात्मक सोच के चलते मस्तिष्क पर अधिक जोर देने पर अल्जाइमर बीमारी होने की संभावना रहती है। यह बीमारी बुजुर्गों में अधिक मिलती है। इससे दूर रहने के लिए व्यक्ति को सभी माहौल में रहने की आदत होनी चाहिए। साथ ही लोगों से संपर्क रखना चाहिए।

उम्र बढ़ने के साथ ही तमाम तरह की बीमारियां हमारे शरीर को निशाना बनाना शुरू कर देती हैं। वहीं अल्जाइमर भी इसमें प्रमुख बीमारी है, यह बुजुर्ग लोगों में देखने को मिलती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ याद करने की क्षमता कम होती रहती है और बातों को भूल जाते हैं। इस बीमारी को कम करने के लिए  हर साल 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर्स-डिमेंशिया दिवस मनाया जाता है ।

इसी के तहत 21 से 27 सितंबर तक चलने वाले राष्ट्रीय डिमेंशिया जागरूकता सप्ताह के तहत प्रदेश के हर जिले में विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये इस बीमारी की सही पहचान और उससे बचाव के उपायों के बारे में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।

कोलंबिया अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. नीरज अग्रवाल ने बताया कि अल्जाइमर की बीमारी में याददाश्त और सोचने की क्षमता खत्म हो जाती है। महामारी के समय में जो लोग अल्जाइमर से पीड़ित हैं उन्हें ज्यादा देखभाल की होती है। उन्हे हाथ की सफाई, मास्क पहनने, सामाजिक दूरी को बनाए रखने के लिए याद दिलाना जरूरी है।

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महामारी ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। वे इस वजह से पोस्ट ट्रॉमाटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीएसटीडी) से पीड़ित हो गए हैं। इसकी वजह से अल्जाइमर से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ सकती है। अर्टफिसियल इंटेलिजेंस जैसी कई तकनीक हैं, जिससे अल्जाइमर की बीमारी का इलाज बहुत ही प्रभावी ढंग से किया जा सकता है। इस बीमारी के में परिवार और समाज के लोगों का सहयोग बेहद जरूरी है।

तनाव से मुक्त होने और हमारी उर्जा को पुनः प्राप्त करने के लिए, प्रकृति ने एक अन्तर्निहित व्यवस्था बनाई है, जो है निद्रा। किसी हद तक, निद्रा तुम्हारी थकान मिटाती है। लेकिन प्रायः शरीर प्रणाली में तनाव रह जाता है।उस प्रकार के तनावों को काबू में रखने के लिए प्राणायाम और ध्यान के तरीके हैं। ये तनाव और थकान से मुक्ति देते हैं, क्षमता बढ़ाते हैं, तुम्हारे तंत्रिका तंत्र और मन को मज़बूत बनाते हैं। ध्यान केन्द्रीकरण नहीं है। ये एक गहरा विश्राम है और जीवन को एक अधिक विशाल दृष्टि से देखना है, जिस के ३ स्वर्णिम नियम हैं – मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं कुछ नहीं करता हूँ और मैं कुछ नहीं हूँ।

हमारे अस्तित्व के ७ स्तर हैं – शरीर, श्वास, मन, बुद्धि, स्मृति, अहम् और आत्मा। मन तुम्हारी चेतना में विचार और अनुभूति की समझ है जो निरंतर बदलते रहते हैं। आत्मा हमारी अवस्था और अस्तित्व का सूक्ष्मतम पहलू है। और मन और शरीर को जो जोडती है वह हमारी साँस है। सब कुछ बदलता रहता है, हमारा शरीर बदलाव से गुज़रता है, वैसे ही मन, बुद्धि, समझ, धारणाएँ, स्मृति, अहम् भी। लेकिन ऐसा कुछ है तुम्हारे भीतर जो नहीं बदलता। और उसे आत्मा कहते हैं, जो कि सब बदलावों का सन्दर्भ बिंदु है। जब तक तुम इस सूक्ष्मतम पहलू से नाता नहीं जोड़ोगे, आयुर्वेद की प्राचीन पद्धति के अनुसार तुम एक स्वस्थ व्यक्ति नहीं माने जाओगे।

स्वास्थ्य की दूसरी निशानी है, सचेतता, सतर्क और जागरूक रहना। मन की २ स्थितियां होतीं हैं। एक तो शरीर और मन साथ में। और दूसरा शरीर और मन भिन्न दिशाओं की ओर देखते हुए। कभी जब तुम तनाव में हो, तब भी तुम सतर्क रहते हो, लेकिन ये ठीक नहीं है। तुम सतर्क और साथ ही तनाव-मुक्त भी होने चाहिए, इसी को ज्ञानोदय कहते हैं।

भावनात्मक अस्थिरता तनाव होने के कारणों में से एक है। हरेक भावना के लिए हमारी श्वास में एक विशेष लय है। धीमे और लंबे श्वास आनंद और उग्र श्वास तनाव का संकेत देते हैं। जिस तरह से एक शिशु श्वास लेता है वह एक वयस्क के श्वास लेने के तरीके से भिन्न है। यह तनाव ही है जो एक वयस्क की श्वसन पद्धति को भिन्न बनाती है।

हम अपना आधा स्वास्थ्य संपत्ति कमाने में खर्च कर देते हैं और फिर हम वह संपत्ति स्वास्थ्य को वापिस सुधारने में खर्च कर देते हैं। यह किफायती नहीं है। अगर कोई छोटी-मोटी असफलता आ जाए तो फ़िक्र मत करना, तो क्या हुआ? हरेक असफलता एक नई सफलता की ओर बड़ा कदम है। अपना उत्साह बढ़ाओ। अगर तुम में कुशलता है तो तुम किसी भी परिस्थिति में व्यंग को डाल कर उसे पूरी तरह से बदल सकते हो। तनाव – युक्त होना टालो। पशु जब गीले हो जाते हैं या धुल में खेलते हैं, तो बाहर आ कर वे क्या करते हैं? वे अपना सारा शरीर झकझोरते हैं और अपने आप से सब कुछ बाहर निकाल फेंकते हैं। लेकिन हम मनुष्य सारा कुछ, सारा तनाव पकड़ के रखते हैं। किसी कुत्ते, पिल्ले या बिल्ली को देख कर हमें सब कुछ झकझोरना आना चाहिए। जब तुम ऑफिस में आते हो, तो घर को झकझोर दो। जब तुम घर वापिस जाओ, अपनी पीठ से ऑफिस को झकझोर दो।

(डॉ. नुस्खे )
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