जटायु का एकमात्र मंदिर दंडकारण्य में

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दंडकारण्य

 चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गए। असल में यहीं था उनका वनवास। इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाता था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल हैं। दरअसल, उड़ीसा की महानदी के इस पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।

दंडकारण्य विंध्याचल पर्वत से गोदावरी तक फैला हुआ प्रसिद्ध वन है। यहाँ वनवास के समय श्रीरामचंद्र बहुत दिनों तक रहे थे।दंडकारण्य पूर्वी मध्य भारत का भौतिक क्षेत्र है। क़रीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाक़े के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियाँ तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक क़रीब 320 कि.मी. तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है।

भौगोलिक परिवेश

राक्षस दंडक के आवास पर इस क्षेत्र का नाम पड़ा दंडक वन पड़ा, जिसका उल्लेख रामायण महाकाव्य में है। प्राचीन समय में नल, वाकाटक एवं चालुक्य वंशों ने इस पर सफलतापूर्वक शासन किया। यहाँ गोंड आदिवासी रहते हैं। क्षेत्र का अधिकतर भाग रेतीला समतलीय है, जिसकी ढलान क्रमश: उत्तर से दक्षिण-पश्चिम की तरफ़ है। दंडकारण्य में व्यापक वनाच्छादित पठार एवं पहाड़ियाँ हैं, जो पूर्व दिशा से अचानक उभरती हैं तथा पश्चिम की ओर धीरे-धीरे इनकी ऊँचाई कम होती चली जाती है। यहाँ कई अपेक्षाकृत विस्तृत मैदान भी हैं। इस क्षेत्र की जल निकासी महानदी (जिसकी सहायक नदियों में तेल जोंक, उदंति, हट्टी, एवं सांदुल शामिल हैं) तथा गोदावरी (जिसकी सहायक नदियों में इंद्रावती और साबरी शामिल हैं) द्वारा होती है। पठार एवं पर्वतीय इलाक़ों में दोमट मिट्टी की पतली परत है। मैदानी इलाक़ों एव घाटियों में उपजाऊ, जलोढ़ मिट्टी है। इस क्षेत्र में आर्थिक रूप से कीमती साल के नम वन हैं, जो कुल क्षेत्र के लगभग आधे हिस्से में फैले हैं।

दंडकारण्य की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है; फ़सलों में चावल, दालें एवं तिलहन शामिल हैं। उद्योगों में धान एवं दलहन (अरहर) की मिलें, आरा घर, अस्थि-चूर्ण निर्माण, मधुमक्खीपालन और फ़र्नीचर निर्माण उद्योग शामिल हैं। दंडकारण्य में बॉक्साइट, लौह अयस्क एवं मैंगनीज के भंडार हैं। केंद्र सरकार ने 1958 में पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की मदद के लिए दंडकारण्य विकास प्राधिकरण का गठन किया। इसने भास्केल बांध एवं पाखनजोर जलाशय; जगदलपुर, बोरेगांव एवं उमरकोट में काष्ठशिल्प केंद्र तथा शरणार्थी पुनर्वास क्षेत्रों में बलांगीर-कोजिलम रेलवे परियोजना सहित सड़को और रेलमार्गों का निर्माण किया। मुख्य रुप से विमानों के इंजन फ़ैक्ट्री सुनाबेड़ा में स्थित है। राष्ट्रीय खनिज विकास निगम बेलाडीला में लौह अयस्क का उत्पादन करता है। दंडकारण्य के महत्त्वपूर्ण नगर हैं- जगदलपुर, भवानीपाटणा और कोरापुर।

ankit1985

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