गुरु नानक के ये 3 सूत्र मानने वाला बन जाता है बहुत धनवान

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नानक ने अपने दर्शन को तीन सूत्रों में कहा – किरत करो, जप करो, वंड छको यानी काम, पूजा और दान करो। उनके यहां न ‘नमस्ते’ है और न ही ‘सलाम वालेकुम’। वहां सिर्फ ‘सत-करतार’ है, जिसका संबंध सत्य कर्ता से है।

साधना और अध्यात्म की दिव्य प्रेरणा के अप्रतिम भाव में घुले-मिले नानक लोकोत्तर व्यक्तित्व के अनुपम प्रतिनिधि हैं। नानक की पढ़ाई बाहरी नहीं, भीतरी थी। परमात्मा की भक्ति में ओतप्रोत उनके 976 दोहे और भजन, जो संस्कृत, हिंदी, फारसी और अरबी में गुंथे हैं, आध्यात्मिक ऊंचाई के सर्वोच्च शिखर हैं। यही कारण है कि उनके लिखे शब्द देश और काल की सीमा पार कर समूचे संसार को प्रभावित करने में सफल हुए हैं।

दो परंपरा, एक धारा
भारतीय शास्त्र परंपरा और ईरानी तसव्वुफ के मिलन से एक जागृति फैली। इस चेतना का सात शताब्दियों का लंबा इतिहास है। स्वामी रामानंद इस भक्ति इतिहास के प्रारंभ बिंदु हैं। भक्ति की इस भावभूमि पर जो पुष्प खिले, उनमें कबीर, रैदास और नानक जैसे बड़े नाम शामिल हैं। आचार्य क्षितिमोहन सेन ने गुरु नानक पर किए लंबे अध्ययन में बगदाद के एक अरबी पत्र ह्यदारुस्सलामह्ण का जिक्र किया है। यह 9 अप्रैल, 1919 में छपा। इसमें लिखा है, नानक ने देश-विदेश में घूमकर बड़े योगियों और साधकों की संगत की। बगदाद में उनकी याद में एक मंदिर है, जिस पर तुर्की भाषा में शिलालेख मौजूद है। गुरु नानक के सैयद-वंशी चेलों के उत्तराधिकारी अभी तक इस मंदिर की रक्षा करते हैं।

साझा संस्कृति के संप्रदाय
नानक के पिता मेहता कालू पेशे से मुनीम थे और वे अपने बच्चे को भी मुनीम बनाना चाहते थे। पर वह बालक दुनिया का महान धर्म प्रवर्तक बना। लाहौर से 40 मील दूर दक्षिण-पश्चिम के एक गांव तलवंडी में नानक का जन्म खत्री परिवार में हुआ।

13 की उम्र में उन्होंने एक कविता लिखी, जिसे उन्होंने ‘पट्टीलिखी’ नाम दिया और खुद को ‘शायर’ कहकर संबोधित किया। नानक की शादी हुई और दो बच्चे हुए। कुछ समय सुल्तानपुर में नवाब दौलत खान के यहां चाकरी की फिर निकल पड़े ईश्वर को तलाशने। इनके साथ कुछ लोग भी थे, जिनमें ‘मर्दाना’ नाम का एक मुसलमान भी था। नानक ने जो बात कही, उसे सुनकर समाज में नई हलचल पैदा हुई- दुई जगदीश कहां ते आअ कह कोने भरमाया/अल्लीह, राम, रहीम, केशव, हरी, हजरत नाम धराया।

औरतों की हालत बदतर थी। ऐसे में नानक ने कुरीतियों पर प्रहार और उन्हें खत्म करने की कोशिश में ‘सिख’ धर्म की स्थापना की। सिख शब्द का मूल संस्कृत भाषा का ‘शिष्य’ शब्द है। शिष्य का अर्थ शांत, विनीत, शुद्धात्मा, श्रद्धावान और चरित्रवान होने से है। नानक ने अपने शिष्यों को एकेश्वरवाद का सिद्धांत दिया। ईश्वर के निर्गुण-निरंकार रूप को माना। इस नाते यह कहा जाता है कि सिख पंथ सनातन धर्म की ही अरबी टीका है। साझा संस्कृति की विरासत थामे सिख धर्म को सनातन परंपरा की ही एक बांह कहा जा सकता है।

सत्य से संबंध
नानक ने पांच बड़ी यात्राओं में देश और दुनिया के बड़े भूखंड को नापा। इस दौरान उन्होंने लोगों की धारणाओं और अंध-मान्यताओं को झकझोरा। उनका बनारस का एक वृत्तांत प्रसिद्ध है, जिसमें वे काशी के पंडितों को गंगा में पूर्व दिशा की ओर जल अर्पित करते देखकर पूछते हैं कि वे किसे जल चढ़ा रहे हैं? मालूम हुआ कि वे लोग अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान कर रहे हैं। नानक पश्चिम की तरफ जल अर्पित करने लगे तो पंडितों ने उन्हें टोका। नानक बोले, ‘खेत पश्चिम दिशा की तरफ हैं, मैं उन्हें पानी दे रहा हूं।’ कुछ इसी तरह उन्होंने मक्का की तरफ पैर रखकर सोते हुए टोके जाने पर कहा – मेरे पैर उस तरफ कर दो जहां मक्का न हो।

महिलाओं की बदहाली पर लिखा
महिलाओं की बदहाली पर उन्होंने बहुत लिखा। मासिक धर्म में औरतों को अपवित्र मानने की परंपरा उन्हें भारी नागवार गुज़री। नानक जहां भी गए, उन्होंने हिंदू और मुसलमान, दोनों की अंधी-मान्यताओं पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने लिखा, उसे मंदिर-मस्जिद में नहीं, भीतर खोजो – जो ब्रमांडे सोई पिंडे, जो खोजे सो पावे।

ग्रंथ साहिब का दार्शनिक संदेश
गुरु नानकदेव के अमर वचनों को पहले-पहल गुरु अंगद ने गुरुमुखी में लिखा। ‘ग्रंथ साहिब’ का संकलन और संपादन 1604 ईस्वी में पांचवे गुरु अर्जुनदेव ने किया। गुरुग्रंथ साहिब में मात्र सिख गुरुओं के ही उपदेश ही नहीं है, बल्कि इसमें 30 हिंदू संतों और मुस्लिम भक्तों की वाणी भी सम्मिलित है। इसमें जहां रामानंद, जयदेव और परमानंद जैसे ब्राह्मण भक्तों की वाणी है, वहीं मानव समाज के मुखर प्रतिनिधि कबीर, रविदास, नामदेव, सैन, धन्ना जाट की वाणी भी सम्मिलित है। भाषाई अभिव्यक्ति और दार्शनिक संदेश की दृष्टि से गुरुग्रंथ साहिब अद्वितीय है।

गुरु नानक खुद को न हिंदू मानते हैं और न मुस्लिम। जिसे वे सिख कहते हैं, वह उनकी दृष्टि में सुधरा हुआ हिंदू और सुधरा हुआ मुसलमान, दोनों हैं। आरंभ में उनके पंथ में कई मुसलमान भी दीक्षित हुए, जिनकी संख्या बाद में न के बराबर हो गई। नानक राम की खोज में थे, वे कहते और समझाते हैं- राम सुमिर राम सुमिर, यही तेरो काज है!

(डॉ. नुस्खे )
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ankit1985

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