अस्थमा के मरीजों को निमोनिया से अधिक खतरा

अस्थमा और निमोनिया (Asthma and Pneumonia) दोनों ही श्वसन प्रणाली से संबंधित बीमारियां हैं। दोनों के ही कुछ लक्षण एक जैसे होते हैं, लेकिन दोनों अलग तरह की बीमारी है और इसके कारण और उपचार भी अलग है। अस्थमा सीधे तौर पर निमोनिया के लिए जिम्मेदार नहीं है, लेकिन लंबे समय तक अस्थमा की वजह से मरीज के फेफड़े कमजोर हो जाते है जिससे निमोनिया का जोखिम बढ़ जाता है। अस्थमा और निमोनिया (Asthma and Pneumonia) में क्या संबंध है और दोनों में क्या अंतर है जानिए इस आर्टिकल में।

अस्थमा और निमोनिया क्या है?

अस्थमा को दमा की बीमारी भी कहा जाता है। दमा और निमोनिया (Asthma and pneumonia) दोनों ही बीमारियां सीधे तौर पर आपके फेफेड़ों को प्रभावित करती है।

अस्‍थमा (Asthma ) एक क्रॉनिक कंडिशन है जिसमें सांस की नली में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से सांस लेने में परेशानी होती है और इसमें सांस की नलियों में अतिरिक्‍त बलगम बनने लगता है। अस्थमा मरीजों को खांसी भी बहुत आती है जिससे सांस की नलियां सिकुड़ने लगती है और इसी कारण मरीज का दम फूलने लगता है। अस्थमा का पूरी तरह से इलाज संभव नहीं है, लेकिन सही समय पर उपचार करने से इसे असरदार तरीके से मैनेज किया जा सकता है और समय के साथ इसमें सुधार भी होता है।

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निमोनिया (Pneumonia) फेफड़ों का संक्रमण (lung infection) है, जो बैक्टीरिया (Bacteria), फंगी (Fungi), पैरासाइट (Parasites) या वायरस (Viruses) के कारण हो सकता है। बैक्टीरियल निमोनिया व्यस्कों में होने वाला आम निमोनिया है। निमोनिया एक या दोनों ही फेफड़ों में हो सकता है। इसमें मरीज के फेफड़ों में पानी भर जाता है और अस्थमा की तरह ही निमोनिया में भी फेफड़ों में सूजन आती है, हालांकि यह एयर सैक (Air sac) को प्रभावित करता है जिसे एल्वियोली (alveoli) कहा जाता है और यह ब्रोंकोइल एयरवेज के आखिर में होता है। फेफड़े की वायु थैली (Air sacs) में मवाद या तरल पदार्थ जमा होने के कारण मरीज को सांस लेने में मुश्किल होती है।

अस्थमा और निमोनिया में क्या संबंध है?

आम भाषा में इसे समझा जाए तो अस्थमा सीधे तौर पर निमोनिया के लिए जिम्मेदार नहीं है, लेकिन जिन लोगों को लंबे समय से दमा जैसी श्वसन प्रणाली संबंधी बीमारी है उन्हें निमोनिया होने का खतरा बढ़ जाता है। क्योंकि उनके फेफड़े पहले से ही कमजोर होते हैं। यही नहीं अस्थमा मरीजों में सामान्य सर्दी या फ्लू में भी गंभीर लक्षण दिखते हैं और फ्लू की वजह से उन्हें निमोनिया हो सकता है। अस्थमा मरीजों में फ्लू होने के बाद निमोनिया का जोखिम अन्य लोगों की तुलना में अधिक होता है।

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अस्थमा मरीजों में निमोनिया के लक्षण

अस्थमा मरीज जो निमोनिया से भी ग्रस्त है उन्हें ठंडी लगने के साथ ही बुखार आ सकता है। दमा और निमोनिया (Asthma and pneumonia) के लक्षण एक जैसे हो सकते हैं जिसकी वजह से डॉक्टर को निमोनिया का पता लगाने में मुश्किल होती है।

दमा और निमोनिया (Asthma and pneumonia) दोनों में ही निम्न परेशानियां हो सकती हैं-

  • सीने में दर्द (chest pain)
  • सांस लेने में दिक्कत (shortness of breath)
  • तेजी से सांस चलना
  • पल्स रेट बढ़ना (increased pulse)
  • खांसी (coughing)
  • खांसी करते समय घरघराहट (wheezing) की आवाज

इसके अलावा अन्य लक्षण भी दिख सकते हैं। अस्थमा के ऐसे मरीज जिन्हें निमोनिया होने का संदेह हो उन्हें निम्न लक्षणों पर ध्यान देने की जरूरत है।

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  • खांसी करते समय बलगम निकलना (mucus in their cough)
  • बुखार (fever)
  • खांसते (coughing) समय सीने में दर्द होना
  • सांस लेते समय अजीब आवाज आना

यदि आपको उपरोक्त में से कोई लक्षण दिखते हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

निमोनिया के आम लक्षणों में शामिल है।

  • सिरदर्द (headaches)
  • थकान (tiredness)
  • भूख न लगना (a loss of appetite)
  • सांस लेने में परेशानी (shortness of breath)
  • चिपचिपी त्वचा (clammy skin)
  • बुखार और ठंड लगना (fever and chills)
  • छाती में दर्द (chest pain) जो खांसते और सांस लेते समय बढ़ जाता है

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जब वायरस की वजह से निमोनिया होता है तो शुरुआत से ही मरीज को मांसपेशियों में दर्द और सूखी खांसी आ सकती है। धीरे-धीरे खांसी बढ़ने लगती है और मरीज को खांसी में बलगम भी आने लगता है। जबकि बैक्टीरिया के कारण यदि निमोनिया होता है तो मरीज को तेज बुखार हो जाता है। निमोनिया के गंभीर मामलों में ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीज के होंठ और नाखून नीले पड़ सकते हैं, ऐसी स्थिति में तुरंत मेडिकल सहायता की जरूरत होती है।

अस्थमा और निमोनिया में क्या अंतर है?

दमा और निमोनिया में मुख्य अंतर यही है कि अस्थमा एक क्रॉनिक और गैर संक्रामक (Non-infectious) स्थिति है, जबकि निमोनिया (Pneumonia) फेफड़ों का संक्रमण (Lung infection) है।

अस्थमा के कारण वायुमार्ग में सूजन आती है और वह सिकुड़ जाता है। यह मुख्य रूप से ब्रांकिओल्स (Bronchioles) को प्रभावित करती है, जो कि फेफड़ों में मौजूद वायुमार्ग की छोटी शाखाएं (branches) हैं।

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अस्थमा का कोई उपचार नहीं है, लेकिन दवा की मदद से इसके लक्षणों में सुधार लाया जा सकता है। समय के साथ दवा की मदद से अस्थमा का असर कम हो जाता है और मरीज बेहतर जिंदगी जी सकता है।

जबकि निमोनिया एक तरह का संक्रमण (infection) है जो एक या दोनों ही फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है। इसमे एयर सैक्स (air sacs) यानी वायु थैली में सूजन होती है न कि ब्रांकिओल्स (Bronchioles) में।

निमोनिया में फेफड़ों (Lungs) में पानी या तरल भर जाता है जिससे सांस लेने में परेशानी और दर्द होता है, इसका उपचार किया जा सकता है। हालांकि अस्थमा और निमोनिया (Asthma and pneumonia) के बहुत से लक्षण एक जैसे ही हैं, लेकिन दोनों अलग-अलग बीमारी है और इनका इलाज भी अलग तरीके से किया जाता है।

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अस्थमा और निमोनिया के जोखिम कारक

दमा किसी को भी हो सकता है। बहुत से लोगों को बचपन से ही इसके लक्षण दिखने लगते हैं। अस्थमा (Asthma) के जोखिम कारको में शामिल है।

अस्थमा का पारिवारिक इतिहास

मरीज का रेस्पिरेटरी इंफेक्शन या एलर्जी का इतिहास

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अस्थमा की तरह ही निमोनिया (Pneumonia) भी किसी को भी हो सकता हैं, हां अस्थमा मरीजों में निमोनिया का जोखिम थोड़ा अधिक होता है। स्मोकिंग (Smoking) भी आपके निमोनिया होने के खतरे को बढ़ा सकती है। अन्य जोखिम कारको में शामिल है।

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  • हाल ही में रेस्पिरेटरी इंफेक्शन जैसे सर्दी या फ्लू हुआ हो
  • क्रॉनिक लंग डिसीज (chronic lung disease)
  • दिल की बीमारी (heart disease)
  • डायबिटीज (diabetes)
  • लिवर की बीमारी (liver disease)
  • सेरेब्रल पाल्सी (cerebral palsy)
  • न्यूरोलॉजिकल (Neurological) स्थिति जिससे निगलने में परेशानी हो
  • कमजोर इम्यून सिस्टम (Immune system)

अस्थमा और निमोनिया का निदान कैसे किया जाता है?

यदि आपको अस्थमा (Asthma) के लक्षण हैं तो डॉक्टर आपकी पूरी मेडिकल हिस्ट्री की जांच करने के साथ ही आपके नाक, गले और वायुमार्ग (airways) की भी जांच करता है। इसके अलावा वह आपके फेफड़ों (Lungs) और सांसों का परीक्षण भी करता है। यदि सांस लेते समय फेफड़े से सीटी जैसी आवाज आती है तो यह अस्थमा (Asthma) का लक्षण है। आपके फेफड़ों की कार्यप्रणाली को जांचने के लिए डॉक्टर आपको स्पायरोमीटर (spirometer) पर सांस लेने के लिए कह सकता है। वह एलर्जी टेस्ट (allergy tests) के लिए भी कह सकता है।

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यदि आपके लक्षण निमोनिया (Pneumonia) का संकेत देते हैं तो डॉक्टर आपके फेफड़ों की जांच करेगा। निमोनिया (Pneumonia) का एक लक्षण हैं सांस लेते कर्कश आवाज (crackling sound) आना। अधिकांश मामलों में इसके निदान के लिए छाती का एक्स रे (chest X-ray) करने की सलाह दी जाती है। यदि जरूरत पड़े तो ज्यादा स्पष्ट नतीजों के लिए डॉक्टर छाती का सीटी स्कैन (CT chest scan) कराने की भी सलाह दे सकता है। आपका ब्लड टेस्ट भी किया जा सकता है जिससे बल्ड में ऑक्सीजन (Oxygen) की मात्रा और व्हाइट ब्लड सेल्स (white blood cells) की मात्रा का पता चल सके। छाती में बलगम है या नहीं इसकी जांच करके भी निमोनिया का पता लगाया जा सकता है।

अस्थमा और निमोनिया का उपचार

अस्थमा के इलाज के लिए दोनों ही लॉग्न टर्म और शॉर्ट टर्म ट्रीटमेंट प्लान की जरूरत होती है। जबकि निमोनिया (Pneumonia) के अधिकांश मामलों में डॉक्टर कुछ ही दिनों में मरीज का इलाज कर उसे ठीक कर देता है।

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अस्थमा का उपचार

अस्थमा एक क्रॉनिक डिसीज (Chronic disease) यानी लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है जिसके लिए लंबे उपचार की जरूरत होती है। जैसे ही आपको दमा के लक्षण दिखे इसके लक्षणों का तुरंत उपचार शुरू करवाना जरूरी है, क्योंकि गंभीर अस्थमा अटैक (acute asthma attack) जानलेवा साबित हो सकता है और यह मेडिकल इमरजेंसी (Medical emergency) की स्थिति है। जिन स्थितियों में आपको अस्थमा अटैक आने का खतरा अधिक होता है उससे दूर रहना जरूरी है जैसे यदि आपको धूल-मिट्टी या किसी अन्य चीज से एलर्जी (Allergy) है तो उससे दूर रहें।

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यदि आपको गंभीर अस्थमा है तो अस्थमा अटैक से बचने के लिए आपको रोजाना दवा की जरूरत पड़ सकती है। इसमें शामिल है ओरल या इनहेल्ड कोर्टिकोस्टेरॉइड (corticosteroid), लॉन्ग टर्म बीटा-2 एगोनिसट्स जैसे सालमेटोरोल (salmeterol) या सबलिंगुअल टैबलेट (sublingual tablets), जो कि इम्यूनोथेरेपी (immunotherapy) का प्रकार है।
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निमोनिया का इलाज

यदि आपको दूसरी कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं है तो निमोनिया का उपचार घर पर ही किया जा सकता है। घर पर रहकर आराम करें, खूब तरल पदार्थ (Liquid) का सेवन करें जिससे बलगम ढीला होकर छाती से निकल जाए और बुखार (Fever) के लिए आप ओवर द काउंडर दवाएं ले सकते हैं। ध्यान रहे बच्चों को एस्प्रिन (aspirin) न दें। दरअसल, 18 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी बीमारी में एस्प्रिन लेने की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि इससे दुर्लभ लेकिन जानलेवा रे सिंड्रोम (Reye’s syndrome) का खतरा बढ़ जाता है। यदि निमोनिया में आपको खांसी भी आ रही है तो डॉक्टर की सलाह पर ही खांसी की दवा लें। डॉक्टर वायरल निमोनिया (viral pneumonia) के लिए एंटीवायरल दवा (antiviral medication) और बैक्टीरियल निमोनिया (bacterial pneumonia) के लिए एंटीबायोटिक्स (antibiotics) दे सकता है।

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यदि मरीज को दूसरी स्वास्थ्य समस्या हैं या उसकी उम्र 5 साल से कम और 65 साल से अधिक है तो उपचार थोड़ा मुश्किल हो जाता है। निमोनिया यदि गंभीर है तो मरीज को अस्पताल में भर्ती करवाने के साथ ही इन चीजों की जरूरत पड़ सकती है

  • इंट्रावेनस फ्लूड
  • एंटीबायोटिक्स
  • सीने में दर्द के लिए दवा
  • चेस्ट फिजिकल थेरेपी
  • ब्रिदिंग में मदद के लिए ऑक्सीजन थेरेपी

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क्या अस्थमा और निमोनिया से बचाव किया जा सकता है?

अस्थमा से बचाव संभव नहीं है। हालांकि बीमारी का सही तरीके से मैनेजमेंट करके अस्थमा अटैक के खतरे को कम सकता है। आप न्यूमोकोकल निमोनिया जो एक तरह का बैक्टीरियल निमोनिया है, के लिए आप टीका लगवा सकते हैं। डॉक्टर कुछ लोगों को जिन्हें बीमारी का जोखिम अधिक होता है उन्हें यह टीका लगवाने की सलाह दे सकता है। आप वैक्सीन लगवा सकते हैं या नहीं इस बारे में डॉक्टर से बात करें।

निमोनिया से बचने के लिए रखें इन बातों का ध्यान-

  • कीटाणुओंसे बचने के लिए नियमित रूप से अपने हाथ धोते रहें।
  • स्मोकिंग और तंबाकू के सेवन से परहेज करें, क्योंकि यह किसी तरह के संक्रमण से लड़ने में फेफड़ों को कमजोर बना देता है।
  • हेल्दी डायट लें।
  • फिजिकली एक्टिव रहें।
  • पर्याप्त नींद लें
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अस्थमा और निमोनिया (Asthma and pneumonia) दोनों ही फेफड़ों से जुड़ी बीमारी है, लेकिन निमोनिया ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए थोड़े से भी लक्षण दिखने पर नजरअंदाज न करें, बल्कि तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।

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